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एक परिवार की कहानी

लेखिका: ख़ुशनूर

संपादक: तमन्ना

तारीख़: ५ मार्च, २०२१

*सारे नाम बदले गए हैं।

 

सात वर्ष की मरियम* अपने माता-पिता, चार बहन, और एक भाई के साथ रहती है। उसके पिता मलबा गाड़ी मे मलबा उठाने का काम करते हैं और उसका परिवार बहुत ग़रीब है। वह एक किराए के कमरे में रहते हैं जिसमें लाइट और पंखे की व्यवस्था भी नही है। यह परिवार किसी तरह अपना गुज़ारा करता आ रहा हे।

कुछ समय पहले मरियम के साथ एक दुर्घटना हो गयी। राकेश*, एक बारह-तेरह वर्ष का लड़का जो मरियम के घर के पास ही रहता था, उसने मरियम को रोज़ की तरह अपने घर के बाहर खेलते हुए देखा और उसे बुलाया। राकेश और मरियम एक दूसरे को पहले से जानते थे तो मरियम उसके बुलाने पर उसके घर चली गयी। घर पर राकेश अकेला था क्यूँकि उसके माता-पिता काम पर थे। राकेश ने मरियम को गोद में बिठा कर उसके साथ यौनिक हिंसा करी। मरियम को काफ़ी दर्द महसूस हुआ और वो रोते-रोते वहाँ से भाग गयी।

घर पर मरियम ने अपनी माँ को पूरी बात बता दी और, जब शाम को पिता काम से वापस आए, तो माँ ने उनको भी घटना के बारे में बताया। पिता ने तुरंत पुलिस को फ़ोन किया और अगले दिन पुलिस राकेश को ले गयी। मरियम के केस के जाँच अधिकारी अफ़सर ने मरियम और उसके परिवार को चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सी॰डबल्यू॰सी) के सामने प्रस्तुत किया और सी॰डबल्यू॰सी ने हक़: सेंटर फ़ोर चाइल्ड राइट्स को सपोर्ट प्रोवाइडर नियुक्त किया।

हक़ की तरफ़ से सपोर्ट पर्सन, ख़ुशनूर, मरियम और उसके परिवार को सपोर्ट करने की तैयारी शुरू करने लगी। क्योंकि परिवार के पास फ़ोन नहीं था और उनका घर एक कच्चे इलाक़े में था जहाँ घरों के बारे में कोई नम्बर नहीं लिखा था, उन तक पहुँच पाना आसान नहीं था। जैसे-तैसे हक़ की टीम ने उनका घर ढूँढ ही निकाला।

पहली मुलाक़ात में ही टीम ने देखा की पूरा परिवार एक चोटे से कमरे में, गिने-चुने सामान के साथ, रहता है। उनका कमरा ही उनकी ग़रीबी की हालत बयान कर रहा था। इस् माहौल में मरियम बिलकुल चुप-चाप और उदास सी दिखायी दे रही थी। ख़ुशनूर ने उससे बात करने की काफ़ी कोशिश की, मगर पहली मुलाक़ात में उसने कोई बात नहीं की। स्थिति देखते हुए खुशनूर ने मरियम के पिता से बात करनी शुरू की और उनको हक़ की सारी सुविधाओं के बारे में बताया। संवेदनशीलता से ख़ुशनूर ने उनको समझाया की वह एक छोटा सा फ़ोन ख़रीद लें ताकि उन तक समय पर मदद पहुँच पाय। सब सुनकर पिता हक़ से सपोर्ट लेने के लिए तैयार हो गए और एक छोटा फ़ोन ख़रीदने का महत्व भी समझे। पहली मुलाक़ात के कुछ दिन बाद पिता ने ख़ुशनूर को नए फ़ोन से सम्पर्क किया और ख़ुशनूर ने उनकी काउन्सलिंग तथा क़ानूनी सहायता देने की ओर क़दम बड़ाए।

मरियम का केस दो साल जूवनाइल जस्टिस बोर्ड (जे॰जे॰बी) में चला। पाँच-छह न्यायिक सुनवायी में आने की वजह से मरियम के परिवार को काफ़ी आर्थिक नुक़सान हुआ क्योंकि वे दिहाड़ी मज़दूर हैं और उनकी दिन की दिहाड़ी काट ली गयी। साथ ही साथ सात वर्ष की मरियम नौ वर्ष तक आते-आते, अपनी उम्र के हिसाब से, अपने साथ हुई हिंसा की बारिकियाँ भी भूल रही थी और बार बार उस घटना को बयान करने में काफ़ी संघर्ष कर रही थी। पर हक़ के वक़ील मरियम से दो-तीन बार मिले और उसी का बयान उसको पढ़ कर सुनाया। उन्होंने मरियम को समझाया की वह सुरक्षित है और डरे बिना, आराम से, न्यायिक सुनवायी में अपनी बात बताए। इस तरह मरियम को काफ़ी मानसिक बल मिला और उसने जे॰जे॰बी में पूरी गवाही दी।

जे॰जे॰बी ने राकेश को एक महीने के लिए काउन्सलिंग में भेजा और मरियम को चार लाख का मुआवज़ा देने का ऑर्डर दिया। मुआवज़ा हासिल करने के लिए मरियम का बैंक में खाता खोलने का काम शुरू किया गया परंतु उसके परिवार के पास आधार कार्ड भी नहीं था। काफ़ी संघर्ष करके जब परिवार ने आधार कार्ड्स बनवा लिए तो उनके गाँव के बैंक ने इतने छोटे बच्चे का बैंक में खाता खोलने से मना कर दिया। ख़ुशनूर ने उनकी मदद के लिए कई अलग-अलग बैंकों में बात की परंतु सभी ने खाता खोलने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि मरियम के परिवार के पास दिल्ली में रहने का कोई प्रमाण पत्र नहीं था। अपनी तरफ़ से हर कोशिश के बाद भी ख़ुशनूर और उसका परिवार सफल नहीं हो रहे थे तो एक पार्ट्नर संस्था की मदद ली गयी। उनकी मदद से मरियम के परिवार के आधार कार्ड्स पर घर का पता बदलवाया गया और फिर जा कर पंजाब नैशनल बैंक में मरियम का खाता खुला। अंत में मरियम को मुआवज़े की राशि मिल पाई।

सात से नौ वर्ष तक भी मरियम कभी स्कूल नहीं गयी थी। काउन्सलिंग के द्वारा मरियम की पढ़ाई पर उसके माता-पिता से बात हुई और, क़ानूनी केस के साथ-साथ, मरियम की पढ़ाई का काम भी शुरू कर दिया गया। जब मरियम को स्कूल में दाख़िला दिलाने की कोशिश शुरू हुई तो पता चला कि, बड़ी उम्र होने के कारण, सभी स्कूल मरियम को दाख़िला देने से मना कर रहे थे। यह बात सी॰डबल्यू॰सी को बताई गयी और – उनके आदेश से – मरियम का दाख़िला एक सरकारी स्कूल में हो गया। ख़ुशनूर को तसल्ली थी कि अब मरियम की पढ़ाई शुरू हो जाएगी मगर कुछ टाइम में उसे पता चला की स्कूल बहुत दूर होने के कारण उसका परिवार उसे रोज़ स्कूल नहीं ले जा पा रहा था। आख़िर में जब मरियम के मुआवज़े की राशि उसके खाते में आयी तो उसके पिता ने उसको पास के एक प्राइवेट स्कूल में दाख़िला करवा दिया।

इतने लम्बे सफ़र में ख़ुशनूर और मरियम की काफ़ी दोस्ती हो गयी और दोनो कभी-कभी, मन हल्का करने के लिए, मिलकर मरियम की पसंद के चिप्स, चोक्लेट, और समोसे खाते, और बातों ही बातों में अपना रिश्ता मज़बूत कर लेते। मरियम अब पहले से काफ़ी बेहतर है। वह स्कूल भी जाती है और ख़ुशनूर से ख़ुद ही फ़ोन पर बात भी कर लेती है।

कोरोनावाइरस लॉकडाउन के दौरान हक़ ने मरियम और उसके परिवार को राशन, दूध, और ब्रेड से पूरी सहायता की और अब यह परिवार, अपनी तकलीफ़ों से जूझता हुआ, आगे बड़ रहा है।